हार के जीतने वाले को बाजीगर नहीं येदियुरप्पा कहते हैं। बुकंकरे सिद्धालिंगप्पा येदियुरप्पा कर्नाटक राजनीति के इतने मजबूत नाम हैं कि उनका विकल्प खोज पाना मुमकिन नहीं। एक हारी हुई बाजी को जीतकर वे ऐसा साबित भी कर चुके हैं। उन्होंने कह दिया है कि बीजेपी अब सरकार बनाने का दावा करेगी। वो येदियुरप्पा ही थे जिन्होंने दक्षिण भारत में पहली बार कमल खिलाकर किसी राज्य में बीजेपी का खाता खोला था। एक बार फिर से इस बात पर कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार के गिरने से इस बात पर मुहर लग गई है।
कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन की सरकार गिर चुकी है। ऐसे में माना जा रहा है कि अब बीजेपी वहां सरकार बनाने का दावा करेगी और येदियुरप्पा चौथी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनेंगे। येदियुरप्पा कर्नाटक में पॉलिटिक्स के जोड़-तोड़ के महारथी हैं।
वैसे कर्नाटक में पिछले विधानसभा चुनावों से पहले जब बीजेपी को कर्नाटक में अपने मुख्यमंत्री उम्मीदवार की घोषणा करनी थी तो भाजपा ने येदियुरप्पा पर दाव लगाना ज्यादा उचित समझा। भाजपा का यह दाव गलत भी साबित नहीं हुआ और बीजेपी 44 से बढक़र 104 सीटे जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। हालांकि वह बहुमत से थोड़ी दूर रह गयी इस कारण कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर गठबंधन सरकार बना ली।
येदियुरप्पा के समर्थन का आधार काफी हद तक उनका लिंगायत समुदाय है। लिंगायत समुदाय का प्रभाव पूरे कर्नाटक में है जबकि एक दूसरी जाति वोक्कालिगाओं का असर कर्नाटक के दक्षिणी हिस्से तक सीमित है। मगर येदियुरप्पा को सिर्फ लिंगायत का नेता नहीं कहा जा सकता है। कर्नाटक में बीजेपी के पास येदियुरप्पा पूरे राज्य में एकमात्र ऐसे नेता हैं जिनकी पहुंच हर जगह है। कर्नाटक के मांड्या जिले के बुकानाकेरे में सिद्धलिंगप्पा और पुत्तथयम्मा के घर 27 फरवरी 1943 को जन्मे येदियुरप्पा ने चार साल की उम्र में अपनी मां को खो दिया था।
उन्होंने अपने पॉलिटिकल करियर की शुरुआत 1972 में शिकारीपुरा तालुका के जनसंघ अध्यक्ष के रूप में की थी। इमरजेंसी के दौरान वे बेल्लारी और शिमोगा की जेल में भी रहे। यहां से उन्हें किसान नेता के तौर पर पहचान मिली। 1977 में जनता पार्टी के सचिव पद पर काबिज होने के साथ ही राजनीति में उनका कद और बढ़ गया। येदियुरप्पा 1983 में पहली बार शिकारपुर से विधायक चुने गए और फिर छह बार यहां से जीत हासिल की। 1988 में उन्हें पहली बार बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। 1994 के विधानसभा चुनावों में हार के बाद येदियुरप्पा को विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाया गया था। 1999 में जब वो विधानसभा चुनाव हार गए तो बीजेपी ने उन्हें विधान परिषद का सदस्य बना दिया था।
12 नवंबर 2007 को येदियुरप्पा ने जेडीएस के समर्थन से पहली बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। मगर जेडीएस ने मंत्रालयों के प्रभार को लेकर उनकी सरकार को समर्थन देने से इनकार कर दिया। जिसके बाद 19 नवंबर 2007 को उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। 2008 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में येदियुरप्पा जीत कर दूसरी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने थे। वे किसी भी दक्षिण भारतीय राज्य में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री हैं। मुख्यमंत्री रहते हुए उन पर जमीन आवंटन में गड़बड़ी के आरोप लगे लेकिन हाल ही में उनको क्लीनचीट मिल गई है। 2016 में उन्हें भारतीय जनता पार्टी की कर्नाटक राज्य इकाई का अध्यक्ष बनाया गया था।
एचडी कुमार स्वामी की साझा सरकार भले ही अपना विश्वासमत प्रस्ताव हार गई हो लेकिन सत्ता अभी भी बीएस येदियुरप्पा की पहुंच से दूर है। येदियुरप्पा अगले कदम के लिए बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की ओर देख रहे हैं। कर्नाटक विधानसभा में नेता विपक्ष और बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा के लिये एक बार फिर सत्ता पास आकर भी दूर हो रही है।
मंगलवार को विश्वास मत में हारने के बाद जेडीएस-कांग्रेस की साझा सरकार गिर गई थी। इसके बाद अटकलें थीं कि येदियुरप्पा की अगुआई में बीजेपी अगले 24 घंटों में सत्ता पर अपनी दावेदारी पेश कर देगी। लेकिन फिलहाल बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने फूंक-फूंककर कदम उठाने का फैसला किया है। येदियुरप्पा और बीजेपी नेतृत्व गठबंधन के बागी विधायकों के अयोग्य ठहराए जाने की संभावना से आशंकित हैं। कर्नाटक विधानसभा के स्पीकर के आर रमेश को अभी इन विधायकों के इस्तींफों पर फैसला लेना है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक येदियुरप्पा को स्पीकर के फैसले का इंतजार करना होगा।
तकनीकी रूप से बीजेपी आज भी प्रदेश में इकलौती सबसे बड़ी पार्टी है। लेकिन 225 विधायकों के सदन में उसे बहुमत प्राप्त नहीं है। विधानसभा में एचडी कुमारस्वामी ने जो विश्वास मत पेश किया था उसके पक्ष में 99 और विरोध में 105 वोट पड़े थे। हालांकि 15 बागी एमएलए 2 निर्दलीय और कांग्रेस के 2 अनुपस्थित एमएलए भी सदन का हिस्सा हैं। 2 निर्दलीय विधायक बीजेपी का समर्थन करने का ऐलान कर चुके हैं। इस तरह बीजेपी का आंकड़ा बढक़र 107 हो जाता है। बीएसपी से निष्कासित एमएलए एन महेश ने अभी तक किसी दल को अपना समर्थन देने की घोषणा नहीं की है।
कांग्रेस के दो विधायकों बी नागेंद्र और श्रीमंत पाटिल की भविष्य का भी अभी तक फैसला नहीं हुआ है। अगर ये दोनों कांग्रेस के साथ ही बने रहते हैं और महेश कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन का समर्थन करते हैं तो गठबंधन का आंकड़ा बढक़र 103 हो जाएगा। लेकिन तब सदन की क्षमता 210 होगी जिसमें बहुमत के लिए जरूरी संख्या 106 हो जाएगी। इसका मतलब है कि बीजेपी को यह सुनिश्चित करना होगा कि निर्दलीय अपना पाला न बदलें। विधानसभा अध्यक्ष या तो बागी विधायकों के इस्तीफे स्वीकार कर लेंगे या फिर उन्हें अयोग्य घोषित कर देंगे। इन दोनों ही हालात में बीजेपी को निर्दलीयों पर निर्भर रहना होगा। जब तक कि 15 बागी विधायकों के विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव नहीं हो जाते।
विश्वास मत पर बहस के दौरान विधानसभा में कुमारस्वामी ने कहा था कि मैं आपको बता दूं कि जैसे ही मंत्रिमंडल का गठन होगा आपको लगेगा कि बम धमाका हो गया है। व्यक्तिगत रूप से मुझे लगता है कि जनता के पास जाना बेहतर विकल्प है। दरअसल यह कुमारस्वामी का चेतावनी देने का तरीका था कि जिन विद्रोहियों ने उनकी सरकार को गिराया है वो उनके साथ भी वैसा ही करेंगे।
लेखक- रमेश सर्राफ धमोरा