Thursday, August 1, 2019

भारत में बढ़ रहा है जंगल के राजा का कुनबा 


भारत में बाघ, शेर को जंगल का राजा कहा जाता है। अपनी ताकत के बल पर शेर ने जंगल के जानवरों में राजा का दर्जा हासिल किया है। आज विश्व बाघ दिवस है व पूरी दुनिया में यह दिवस मनाया जा रहा है। विश्व बाघ दिवस के मौके पर देश को बाघों को लेकर एक बड़ी खुशखबरी मिल है। इस दौरान बाघों की बढ़ी और सही संख्या की जानकारी सामने आयी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज सोमवार को अखिल भारतीय बाघ अनुमान रिपोर्ट 2018 को जारी किया है।



इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि देश आज दुनिया में बाघों के लिए सबसे सुरक्षित और सबसे बड़े पर्यावास क्षेत्रों में से एक के रूप में उभर कर सामने आया है। रिपोर्ट के अनुसार देश में बाघों की संख्या 2019 में 2977 हो गई है। प्रधानमंत्री ने कहा आज हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि भारत करीब 3 हजार बाघों के साथ दुनिया के सबसे बड़े और सबसे सुरक्षित पर्यावास में से एक है। उन्होंने कहा कि विकास या पर्यावरण की चर्चा पुरानी है। हमें सह अस्तित्व को भी स्वीकारना होगा और सहयात्रा के महत्व को भी समझना होगा। प्रधानमंत्री ने कहा मैं महसूस करता हूं कि विकास और पर्यावरण के बीच स्वस्थ संतुलन बनाना संभव है। हमारी नीति में, हमारे अर्थशास्त्र में, हमें संरक्षण के बारे में संवाद को बदलना होगा। उन्होंने कहा कि बीते पांच वर्षों में जहां देश में अगली पीढ़ी के आधारभूत ढांचे के लिए तेजी से कार्य हुआ है, वहीं भारत में वन क्षेत्र का दायरा भी बढ़ रहा है। देश में संरक्षित क्षेत्रों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। मोदी ने कहा कि 2014 में भारत में संरक्षित क्षेत्रों की संख्या 692 थी जो 2019 में बढक़र अब 860 से ज्यादा हो गई है। साथ ही सामुदायिक संरक्षित क्षेत्रों की संख्या भी साल 2014 के 43 से बढक़र अब सौ से ज्यादा हो गई है।



प्रधानमंत्री ने कहा मैं इस क्षेत्र से जुड़े लोगों से यही कहूंगा कि जो कहानी एक था टाइगर के साथ शुरू होकर टाइगर जिंदा है तक पहुंची है वो वहीं न रुके। केवल टाइगर जिंदा है से काम नहीं चलेगा। बाघ संरक्षण से जुड़े जो प्रयास हैं उनका और विस्तार होना चाहिए, उनकी गति और तेज की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास है कि भारत आर्थिक एवं पर्यावरण के दृष्टिकोण से समृद्ध होगा। भारत अधिक संख्या में सडक़ें बनाएगा और देश में अधिक संख्या में स्वच्छ नदियां होंगी। भारत में अधिक रेल सम्पर्क होगा और अधिक संख्या में वृक्षों का दायरा बढ़ेगा।



दुनियाभर में जहां बाघ की संख्या कम हो रही है, वहीं भारत में जंगल के इस बड़े जानवर की तादाद में बढ़ोतरी देखी गई है। भारत में महज एक दशक पहले बाघों की संख्या में चिंताजनक गिरावट के बाद शुरू किए गए टाइगर प्रोजेक्ट के लिए यह आंकड़ा निश्चित रूप से बेहतरीन है कि भारत में अब 2977 बाघ हैं। 2006 में देश में बाघों की गिनती में जबर्दस्त गिरावट देखी गई थी। 2006 में देश में सिर्फ 1411 बाघ ही बचे थे। इसके बाद केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयास और वन्य प्राणियों के संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाली एजेंसियों के सहयोग से जंगली जीव के संरक्षण के सकारात्मक प्रयास शुरू किए गए। इन प्रयासों का नतीजा था कि 2010 की बाघ गणना रिपोर्ट में देश में इस जीव की संख्या 1411 से बढक़र 1706 हो गई। वर्ष 2014 में जब बाघों की फिर से गिनती की गई तो इसमें और भी उत्साह वर्धक परिणाम सामने आए। उस साल देश में कुल 2226 बाघ पाए गए थे। इसके 4 साल बाद 2018 में जिसकी रिपोर्ट सोमवार को आई  है उसके मुताबिक देश में कुल 2977 बाघ होने के प्रमाण है। इससे पहले बाघों की गणना को लेकर 2006, 2010 और 2014 में रिपोर्ट जारी हो चुकी है। देश में बाघों के संरक्षण का यह काम राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की देखरेख में ही चल रहा है।



बाघों के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए एक दिन बाघों के नाम समर्पित किया जाता है। पूरे विश्व में बाघों की तेजी से घटती संख्या के प्रति संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाने को लेकर प्रति वर्ष 29 जुलाई को वर्ल्ड टाइगर डे मनाया जाता है। इस दिन विश्व भर में बाघों के संरक्षण से सम्बंधित जानकारियों को साझा किया जाता है और इस दिशा में जागरुकता अभियान चलाया जाता है। 2010 से वर्ल्ड टाइगर डे की शुरूआत की गई थी। वर्ष 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में बाघ सम्मेलन में बाघों के सरंक्षण के लिए पति वर्ष अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस' मनाने का निर्णय लिया गया। तब से प्रति वर्ष दुनिया भर में विश्व बाघ दिवस मनाया जाता है।



दुनिया में जंगलों के कटान और अवैध शिकार की वजह से बाघों की संख्या तेजी से कम हो रही है। वर्ल्ड  वाइल्डलाइफ फंड और ग्लोबल टाइगर फोरम के 2016 के आंकड़ों के अनुसार पूरी दुनिया में तकरीबन 6000 बाघ ही बचे हैं जिनमें से 3891 बाघ भारत में मौजूद हैं। पूरी दुनिया में बाघों की कई किस्म की प्रजातियां पाई जाती हैं इनमें 6 प्रजातियां प्रमुख हैं। इनमें साइबेरियन बाघ, बंगाल बाघ, इंडोचाइनीज बाघ, मलायन बाघ, सुमात्रा बाघ और साउथ चाइना बाघ शामिल हैं।



उत्तराखंड भारत के बाघों की राजधानी के रूप में उभर रहा है। उत्तराखंड के हर जिले में बाघों की उपस्थिति पायी गयी है। वन विभाग के साथ-साथ राज्य सरकार इससे काफी उत्साहित है और केन्द्र सरकार को इस संबंध में रिपोर्ट भेजेगी। देश में उत्तराखंड के अलावा मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व राजस्थान ही ऐसे राज्य हैं जहां बाघ की उपस्थिति दर्ज की गयी है। देश में आये दिन शिकारी बाघ का अवैध शिकार करते रहते हैं। एक समय राजस्थान में तो शिकारियों ने बाघों का सफाया ही कर दिया था मगर सरकार के प्रयासों से शिकारियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की गयी जिस कारण बाघों का कुनबा बढऩे लगा है जो एक शुभ संकेत हैं।


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