कोरोनावायरस की वजह से भारत ही नहीं दुनिया भर में खौफ का आलम है. लॉक़डाउन की वजह से घरों से बाहर तो कम ही निकलना होता है. ऐसे में लोग जाम कर सोशल मेडिया का जाम कर इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन कोरोनावायरस को लेकर सोशल मीडिया पर फैलाई जा रहीं अफवाहें, इनसे सावधान रहें. न्यूज़18 इंडिया लगातार इनकी पड़ताल कर सच सामने ला रहा है. जानिए ऐसे ही कुछ दावों का सच। न्यूज़18 इंडिया की अपील है की इस तरह के दावों को बढ़ावा ना दें.
#पहला दावा: दावा किया जा रहा है कि भारतीय रेलवे टिकट कैंसिल होने पर भी पूरे पैसे वापस नही कर रही है. कैंसिलेशन चार्ज वापस ना मिलने पर सवाल उठा रहे हैं और ये भी कह रहे हैं कि लॉकडाउन में कैंसिल हुए टिकट का घोटाला करोड़ों रुपये का है।
पड़ताल: भारत सरकार की एक प्रेस रिलीज़ के मुताबिक टिकट के लिए गए पूरे पैसे वापस करने के साफ़ निर्देश हैं। भारतीय रेलवे की सहायक कंपनी आईआरसीटीसी ने बताया कि जब कोई ट्रेन कैंसल होती है तो यात्रियों को पूरा रिफंड दिया जाता है लेकिन जो मामूली पैसे काटे जाते हैं, वो सुविधा शुल्क होता है. इन पैसों का इस्तेमाल आईआरसीटीसी अपने वेबसाइट मेंटनेंस में करता है. काउंटर से लिए गए टिकट पर सुविधा शुल्क नहीं लिया जाता.
न्यूज़18 इंडिया की पड़ताल में पता चला कि रेलवे की रद्द टिकटों में घोटाले की बात गलत है।
#दूसरा दावा: एक वीडियो के जरिए दावा किया जा रहा है कि शवों को दफनाने और जलाने के बजाय यूँ ही समुद्र में फेंका जा रहा है. इसके साथ ही एक ये संदेश भी शेयर किया गया है समुद्र की मछली या सी फ़ूड खाना तुरंत बंद कर दीजिए क्योंकि अगर इस समुद्र से किसी ने मछली पकड़ी और उसे बेच दिया या किसी ने पका लिया तो ये सभी के लिए घातक साबित हो सकता है
पड़ताल: ये वीडियो 5 साल पुराना है यानि के कोरोनावायरस फैलने से पहले का है. यूट्यूब चैनल लीबिया का है. न्यूज़18 इंडिया की पड़ताल के मुताबिक वायरल विडियो को साल 2014 में यूट्यूब पर डाला गया और उसमें शव कोरोना पीड़ित लोगों के नहीं है बल्कि लीबिया के समुद्र तट पर प्रवासियों का शव है जो बह कर आ गया किनारों पर आ गए और जिन्हें प्रशासन ने अपने कब्जे में लिया.
#तीसरा दावा: दावा किया जा रहा है कि कोरोनावायरस का इलाज उसके मरीज़ों के शरीर से ही मिलने वाला है।कोरोनावायरस के जिन मरीजों से दुनिया डर रही है उन्हीं मरीज़ों के शरीर से ही इसको मारने वाली दवा तैयार की जा रही है। कोरोनावायरस के ठीक हो चुके मरीजों के ख़ून में ही इसका इलाज छिपा हो सकता है। अमेरिका और चीन ने ठीक हो चुके मरीजों का 'ब्लड प्लाज़्मा' लेना शुरू कर दिया है।
पड़ताल: अमेरिकी मी़डिया की ख़बर के मुताबिक ह्यूस्टन शहर के ह्यूस्ट्न मेथोडिस्ट अस्पताल में कोरोनावारस के मरीज़ों के प्लाज़्मा पर प्रयोग शुरू हो चुका है। रिसर्च के बाद पता लगा है कि कोरोनावायरस के मरीज़ों का प्लाज़्मा इससे लड़ने में कारगर साबित हो सकता है।
दरअसल ठीक होने वाले मरीज़ों के शरीर में 'एंटीबॉडीज़' बनते हैं। ठीक होने वाले मरीज़ों के 'एंटीबॉडीज़' वायरस को नष्ट करते हैं। ऐसे 'एंटीबॉडीज़' ठीक हो चुके मरीज़ों के शरीर में ताउम्र रहते हैं। ये 'एंटीबॉडीज़' ख़ून के 'प्लाज़्मा' में मौज़ूद रहते हैं। ठीक हो चुके मरीज़ों के 'प्लाज़्मा' से एंटीबॉडीज़ बनाने की कोशिश की जा रही है। फिलहाल ठीक हो चुके मरीज़ों के प्लाज़्मा पर प्रयोग किए जा रहे हैं। न्यूज़18 इंडिया की पड़ताल में ये वायरल ख़बर पक्की साबित हुई है।